कहानी...... हिसाब बराबर
जीवन परिचय :-
नाम- उर्मिला शर्मा
पति- डॉ अजित कुमार विश्वकर्मा
पता- मालवीय मार्ग, बंशीलाल चौक, हजारीबाग, झारखंड
जन्मतिथि- 10/11/1972
शिक्षा- नेट, पीएच. डी
व्यवसाय- सहायक प्राध्यापक
प्रकाशित रचनाएँ- दर्जनों शोधालेख, कहानी, कविता, संस्मरण,यात्रा- वृतांत आदि ।
प्रकाशित पुस्तकें- प्रकाशनाधीन
सम्मान का विवरण- साहित्य चेतना सम्मान 2019, अटल हिंदी सम्मान - 2020 ।
कहानी....
हिसाब
बराबर
(उर्मिला शर्मा)
गुलाबो आंगन में घूंघट काढ़े लाल गोटेदार साड़ी पहने और उसपर लाल सितारों
जड़ी चुनरी ओढे पीढ़ा सकुचाई सी पर बैठी थी। गेहुएं रंग की तीखे नैन- नक्श, बड़ी-बड़ी आंखे
और लंबे बालों की चोटी नागिन सी धरती छू रही थी। माथे पर बड़ी सी गोल
लाल बिंदी और आंखों में मोटे काजल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। दुबली-
पतली कमनीय क्या वाली गुलाबो छुई- मुई बनी बैठी
थी। दसवीं तक पढ़ी- लिखी थी वह। सिलाई- कढ़ाई
तो वह जानती ही थी, साथ ही साथ घर के कामकाज में भी निपुण थी
क्योंकि सौतेली माँ के समय में पलने के कारण उसे यह सब तो आना ही था। गांव की औरतें
इकट्ठी हो गयी थीं। एक- एक कर उसका घूंघट उठाकर वो उसका मुखड़ा
देखती और हाथ मे सगुन के कुछ रुपये रख आशीष देते हुए उसकी सुंदरता की बड़ाई करती हुई
रामेसर की किस्मत को दाद देतीं। "ई बुढापे में रामेसर का
तो भागे खुल गया। कितना सुंदर और कमसिन बहुरिया पा गया है।" - किसनी चाची की आवाज़ सुनाई पड़ी।
धीरे- धीरे औरतों
की भीड़ छटने लगी और जब आंगन खाली हो गया तो किसानी चाची ने गुलाबो से कहा
-" सुनो बहुरिया! अब ई घर को सुरग बनाने का
जिम्मा तुमरे ऊपर है। बिन घरनि का ई घर घर कहां था। बचपने में रामेसर के माई गुजर गई।
बाप ने पोसकर बड़ा किया। उ भी दस बरीस पहिले चल बसा। अब तुम इस घर को अउर रामेसर को
सम्भालो।"
गुलाबो
ने आँचर धर चाची के पांव छुए। चाची आशीष देते हुए निकल गईं। जाते समय बाहर पीपल के
चबूतरे पर साथियों से घिरे रामेसर को भीतर जाने को कहना न भूलीं।
रामेसर अंदर जाकर आंगन का दरवाजा उढका दिया। गुलाबो के पास जाकर उसका
हाथ पकड़कर खाट पर बिठाया और उसके बगल में बैठ उसे घर- परिवार,
रिश्ते- नाते के विषय बताया। चूल्हा- चौका दिखाया। चालीस साल के रामेसर के आगे पीछे कोई न था। अकेला मानुष होने
के कारण अब तक शादी- विवाह के लिए कोई पहल करने वाला न था जिससे
शादी न हो पाई थी। खाने पीने की कमी न थी। थोड़े जमीन के अलावा वह ईंट भट्ठा में भी
काम करता था। गुलाबो के आने से उसकी जिंदगी सँवर गयी थी। घर मे जैसे रौनक सी आ गयी
थी। गुलाबो जैसी सुघड़ व चतुर पत्नी पाकर वह निहाल हुआ जा रहा था। मज़े में जिंदगी कटने
लगी। रामेसर का एक साथी था किसना वह कभी- कभी उसके घर आता-
जाता था। गांव के लफंगे लड़कों में वह गिना जाता था। वह अच्छे खाते-
पीते घर का था। पर किसी काम- धाम में उसका मन न
लगता था। एकलौता लड़का था अपने घर का। घरवाले भी उससे परेशान रहते थे लोगो की उससे सम्बन्धी
शिकायतों को लेकर। एक रोज जब किसनी चाची गुलाबो के घुस रही थी तो उसने रामेसर के साथ
महेसा को घर से निकलते देखी। तभी उसने गुलाबो को उसने चेता दिया था कि वह रामेसर को
उसे घर लाने से मना कर दे। पहले की बात और थी। अब यह घर औरत वाला हो गया है। साथ ही
चाची ने गुलाबो को ताकीद भी कर दी थी कि वह महेसा के सामने ज्यादा न आये। गुलाबो को
भी उसकी हरकतें अच्छी न लगती थी किन्तु लिहाज में वह कुछ न कह पाती थी। रामेसर इतना
सीधा था कि उसे यह सब समझ ही न आता। आता तो भौजी- भौजी कह बार-
बार बुलाता रहता। बिना बात का बात करता। उसकी एक सौतेली विधवा बहन थी
जिससे गुलाबो की दोस्ती हो गयी थी। फुलवा नाम था उसका। घरवाले का उसके साथ अच्छा व्यवहार
नहीं था। गुलाबो से अपने दिल की बातें कर उसका मन हल्का हो जाता था। उसे ज्यादा कहीं
बाहर आने जाने की इजाजत न थी परंतु महेसा केवल गुलाबो के घर जाने से न रोकता था।
जेठ की दुपहरिया थी। रामेसर सुबह में ही रोटी, तरकारी और प्याज लेकर ईंट भट्ठे पर निकल गया था। देर शाम तक लौटता। आज सुबह
कुएँ पर पानी भरने के समय उसने गुलाबो को दोपहर में अपने घर बुलाया था। उसे मेहंदी
लगानी थी और गुलाबो मेहंदी पर बड़ा खूब डिज़ाइन काढ़ती थी। गुलाबो घर का सारा काम निपटाकर
मेहंदी पीस कर कटोरा में रख ली थी। गेंहूं पिसवाना था सो उसने धोकर आंगन में खाट पर
सूखने के लिए चादर डाल फैला रखी थी। मुह सुख रहा था। एक लोटा पानी पी गुलाबो ने और
कोठरी के भीतर लेटकर एक मोड़कर आंख पर रखे दूसरे हाथ से पंख झलने लगी।
गर्मी चरम पर थी। मानो शरीर की सारी शक्ति निचुड़ गयी हो। लू भरी हवा सांय- सांय चल रही थी। कपड़ा जो उसने नहा-धोकर पसारे थे उनसे
तेज हवा के कारण फट-फटाक की आ रही थी। तभी लगा आंगन की किवाड़
की कुंडी किसी ने खटखटायी। उसने जाकर देखा तो दरवाजे पर कोई नहीं था। हवा के कारण खड़खड़ा
उठी थी। वापस आकर फिर लेट गई। मन ही मन फुलवा के आने का बाट जोह रही थी। लगभग आधे घण्टे
बाद फिर कुंडी खड़की। इस बार तो फुलवा ही होगी, यह सोचकर हुलसित
मन से किवाड़ खोलने गयी। मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोली तो चौक गयी। दरवाजे पर महेसा खड़ा
था। उसकी भौहे तन गयीं और लगभग दरवाजा बंद करने को होते हुए उसने कहा
-" आपके भैया नहीं है। शाम को आइयेगा।" महेसा दांत निपोरते हुए कहा
-"अभी चल जात हैं भौजी, तनिक कुदाल दे दो।
जरूरी है।" "यहीं रुको लाके देते
हैं।" कहकर गुलाबो जल्दी से अंदर आयी यह सोचते हुए की जल्दी
से इस बला को कुदाल देकर हटाये। घर के पिछवाड़े से कुदाल लेकर जैसे ही मुड़ी देखा महेसा
अजीब नजरों से देखता हुआ खड़ा था। उसकी निगाहों में एक अजीब शैतानियत भरी थी। गुलाबो
उसकी नीयत भांप भयभीत हो उठी किन्तु ऊपर से दृढ़तापूर्वक पूर्वक उसे बाहर निकलने बोली
तभी उसके हाथ से कुदाल लेकर उसने फेंक दिया और उसकी कलाई पकड़ ली। बोला
-"भौजी जबसे तुमको देखें हैं दिन- रात तुमरा
ही सपना देखते हैं। कछु नाहीं होगा, किसी को कुछ नहीं पता लगेगा।
उ अधेड़ महेसर में का रखा है।"
गुलाबो अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली
-"हाथ छोड़ो मेरा और भाग जाओ नहीं तो चिल्लाकर सबको बुलाऊंगी।"
इस बात पर महेसा झट अपना एक हाथ से गुलाबो
का मुंह दबा दिया और उसे खिंचते हुए कोठरी में ले जाने लगा। पूरे ताकत से गुलाबो अपने
को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। वह उसे लगातार खिंचते हुए अंदर ले जाने का प्रयत्न कर
रहा था। ओकने की कोशिश में उसने आंगन में पड़ा खाट पकड़ लिया। महेसा ने और झटके से उसे
खींचा। गुलाबो की पकड़ ढीली हो गयी , दुबारा पकड़ने
की कोशिश में खाट की चादर उसके पकड़ में आई और खिंच गयी। पूरा गेहूं आंगन में बिखर गया।
गुलाबो मन ही देवी- देवता को गुहरा रही थी कि वो इस समय फुलवा
को भेज दे ताकि उसकी अस्मत बच जाए। अबतक महेसा गुलाबो को
कमरे के दरवाजे तक खींच लाया और एक झटके से उसे बिस्तर पर धकेल दिया। गुलाबो उठकर भागना
चाही तभी महेसा ने उसको फिर धकेलना चाहा तो गुलाबो के हाथ से लगकर बिस्तर के पास की
खिड़की पर रखी मेहंदी उसके ऊपर आ गिरी। गुलाबो हरसम्भव उसके चंगुल से छूटने की कोशिश
करती रही। लेकिन वह इसमे सफल न रही। महेसा शैतान की तरह उसपर हावी रहा और अपना मंसूबा
पूरी करने में कामयाब रहा। फिर वह भाग खड़ा हुआ।
लूटी- पिटी और बिखरी हुई गुलाबो पीड़ा और अपमान
से कांप रही थी। शरीर बेतरह कांप रहा था। रो-रोकर उसके आंसू भी
सुख चले थे। शरीर और आत्मा से घायल गुलाबो अपने को सहेजने और समेटने की कोशिश करती
रही। तीन घण्टे बीत गए। शाम होने को आई। रामेसर जैसे ही आंगन में घुसा, देखा गेंहु बिखरा पड़ा है। इस समय तो गुलाबो बरामदे में चूल्हे के पास दिखती
है। वह भी न दिखी। आशंकाग्रस्त होकर गुलाबो को आवाज देते हुए कोठरी में गया। गुलाबो
की हालत देख उसे काठ मार गया। उसे देखते ही गुलाबो उसे पकड़ जार- जार रोने लगी। रामेसर पूछता रहा लेकिन उसकी रुलाई रुकने का नाम ही न ले रहा
था कि वो उसे बताये की उसके साथ क्या हुआ। कुछ देर के बाद उसने सारी घटना रामेसर को
बता डाली। सुनकर क्रोध से उसकी नशें तन गयी। दुख से चेहरा मलिन हो गया। गुलाबो ने कहा-
" हमको न्याय चाहिये।"
"तुम जैसे कहोगी वैसा
करेंगे। कल ही पंचायत में इस बात को कहेंगे।" रामेसर ने
गुलाबो के सिर को अपने कंधे से लगते हुए कहा।
दो दिन दिन पंचायत में गुलाबो से घटना
के बारे
में पूछा गया। उसने ज्यो का त्यों घटना को दुहरा दिया। पंच और गांव के
पुरुष बैठे थें। महिलाएं कुछ दूर पर खड़ी थी। गुलाबो ने हाथ जोड़कर पंचों से न्याय की
गुहार लगाई। आपस मे सलाह- मशविरा कर पंचो ने यह फैसला सुनाया
-" महेसा को पचास हजार के जुर्माने की रकम रामेसर को अदा करे।"
तब इसपर महेसा गिड़गिड़ाने लगा कि पचास हजार
की रकम तो वह किसी भी प्रकार चुकाने में असमर्थ है। कोई और सजा दें। तब पंचों ने उसे
पांच साल तक गांव छोड़कर जाने का आदेश दिया। महेसा फिर भी खड़ा रहा। इस बात पर अपनी सहमति
नहीं दी। पंचों के पूछने पर उसने कहा कि वह पंचो को कुछ कहना चाहता है। वह सरपंच के
पास जाकर बोला -" रामेसर चाहे तो वही सब मेरी बहन के साथ
कर सकता है जो उसकी जोरू के साथ हमने किया। हिसाब बराबर हो जाएगा।"
पंचों ने ये बात जब पंचायत में कही तो
गुलाबो फुफकार उठी। क्रोध से उसका बदन कांपने लगा। दूर खड़ी महिलाओं ने भी सुना तो उन्हें
जैसे सांप सूंघ गया। उनमें महेसा की बहन फुलवा भी खड़ी थी। रामेसर कुछ कहता उससे पहले
गुलाबो बोल उठी -" वाह रे इंसाफ ! एक औरत की इज्जत लूटने का इंसाफ देने के लिए फिर एक औरत की इज्जत लूटेगी। मतलब
न्याय के बहाने फिर एक पुरुष को औरत से मनमानी करने की सजा। हद है इन आदमियों का एकतरफा
न्याय। कैसे- कैसे खेल रचाये जाते हैं मान- प्रतिष्ठा, रीति- रिवाज और न्याय
के नाम पर। हमको अब नहीं रहा विश्वास इस पंचायत पर। अब तो हम कानून के सहारे अपने न्याय
की लड़ाई लड़ेंगे।" गुलाबो रामेसर का हाथ पकड़ पंचायत से निकल
आयी।
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