कविता... स्वतंत्रता...


 
बबिता सिंह (कवयित्री) 
हाजीपुर, वैशाली बिहार

स्वतंत्रता... 

स्वतंत्रता प्रभात की खिलते हैं खलिहानों में 
वेदों से ले पुराणों में ऋषियों के आह्वान में
 प्रिय स्वतंत्र देश  है गंगा पखारती जहाँ 
 धरा ये विश्वेश  है।

क्षितिज गगन हरित है वन,
सिद्धि औ यश का संचरण 
पवन पवन कहे सदा स्वतंत्र मन प्यारा वतन 
इतिहास है यह कह रहा
स्वतंत्रता जय मान की
धरा ये विश्वेश है।

जाति-धर्म संप्रदाय का
ना कोई अंतर भेद है 
राम-रहीम बुद्ध ईसा
सब एक ही स्वरूप है
विभिन्न  संस्कृति का गुण 
बुद्धि वैर का लवलेश है
धरा ये विश्वेश है।

तीर्थों का तीर्थ देश है
कोटि आदर्श भेस है 
स्वतंत्रता के कंठ  से  कर रहे जय नाद हैं
समता के संवाद का
ना कोई व्यवधान है
धरा ये विश्वेश है।

बड़ी ही  मन्नतों से हमने 
जन्म है यहाँ लिया गोद में मातृभूमि की स्वतंत्रता के नीर से 
षड्ऋतुओं का सुधा पिया
सूर्य चंद्र का मुकुट पहन
धरा ये विश्वेश है।

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