कविता... हिमालय



डॉ. हरेन्द्र सिंह असवाल 
एसोशिएट प्रोफेसर 
हिंदी विभाग, जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज

हिमालय 
चीन बैठा है चोटियों पर
घाटियों में, धर्रों में
ये सोचकर कि 
पिघल जायेगा हिमालय। 
शदियों से आततायी आते गये
वे सोचते रहे
झुक जायेगा हिमालय। 
हिमालय न झुकने का नाम है 
न पिघलने का, न टूटने का। 
हिमालय पिघलता है  ममता से
झुकता है  सच्चाई से, और 
टूटता है प्रेम में बिछने के लिए।

(2)
जहां जीवन तपस्या है 
मृत्यु अमरता 
आत्मा पवित्र
जहां विध्वंश और निर्माण 
सतत चलता रहता है 
जहां आस्था और  विश्वास समाधि में लीन रहते हैं
बिना किसी स्वार्थ  के
उस तपःपूत धरती के धवल 
स्वरूप का नाम है हिमालय।

(3)
जीवन देने का नाम है  हिमालय 
नदियों जिसकी बेटियाँ  हैं 
पर्वत हैं  पुत्र 
घाटियाँ गोद हैं 
जंगल जीवन की  औषधियाँ 
झरने संगीत  ,बादल राग 
उसे कहते हैं  हिमालय।

(4)
चीन तुम्हारे इरादे 
जितने भी कुटिल हों 
तुम्हारी  फौज कितनी भी बड़ी  हो
जितना भी हो लाव लश्कर 
गोला बारूद 
तोप और  तोपखाना 
जो भी हो वह सब एक ही 
करवट में  धराशायी हो जायेंगे। 
तुम्हारे बूट जितनी निर्ममता से चलेंगे 
उतनी ही निर्दयता से 
तुम्हें  कुचल दिया जायेगा। 
हिमालय हमारे हौसले का 
और  तुम्हारी पराजय का नाम है।

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