कविता....



प्रकृति का क्या कहना 

श्रीमती कमल सुनृत वाजपेयी
205, अखिलालय 91, नेपियर 
टाऊन, जबलपुर-482001. (म.प्र.)

प्रकृति का क्या कहना 
शीतल मंद समीर का बहना 
सरस्वती ने सुनाये मधुर गान
हम सब मिल गाएँ मधुर गान 
वृक्षों ने पहन लिये टेसू के गहने 
प्रकृति का क्या कहना 
महुएँ की महक से चहक उठे जंगल 
फीके पड़ गये रंग गुलाल 
सरसों का पीला-पीला लिबास 
खिल गया मन का पलास 
प्रकृति का क्या कहना 
महक उठी अमराई 
कोयल भी कुहुक रही अमराई 
मौसम ने भी ले ली अंगड़ाई 
प्रकृति का क्या कहना 
देखो महक रही अमराई 
देखो महक रही अमराई।

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