अवधी में वर्षा ऋतु पर 'गीत'
संतोषी दीछित
-कानपुर, उत्तर प्रदेश
विधा- अवधी लोकगीत, कवितायें,
गजल, गीत व छंद मुक्त लेखन,
साहित्य यात्रा दो
वर्ष, सम्मान- तुलसी काव्य सम्मान,
कई सम्मानित
संस्थाओं से सम्मान प्राप्त, देश के कई
राज्यों से सम्मानित, समाचार पत्रों में रचनाएँ प्रकाशित व कई टी. वी चैनल में प्रसारण.
चलौ,नयना मिलाय लेई ,हम तुम सजन-2
ड्वालै पुरवइया,झूमै यहु मन
चलौ----
रुनकि -झुनकि बरखा रितु आयी,
धरती मइया फिर ते नहायी ,गरजै
बदरा,चमकै बिजुरिया,कांपै जियरा ,
कांपै गगन,
चलौ-
ड्वालै पुरवइया,झूमै यहु मन
चलौ----
रुनकि -झुनकि बरखा रितु आयी,
धरती मइया फिर ते नहायी ,गरजै
बदरा,चमकै बिजुरिया,कांपै जियरा ,
कांपै गगन,
चलौ-
दादुर ,मोर पपीहा ,ब्वालै, झींगुर
द्याखौ चाचर ,थ्वालै,टप टप बूदैं
गांवै गाना,नाचि रहीं हैं उई झमाझम,
चलौ---
चहूं दिशन मा गूजैं करतल,नदिन
अउ नालन मा भरि गा जल,डारिया
निखरि निखरि के बुलावैं,कलियां
मंद मंद मुसकावैं,नाचैं मयूरा होइके
मंलग,
चलौ----
भीगि भीगि के संखियां नाचैं ,ऐइसी
भागैं ,वइसी भागै,परि गे है अमवा मा
झूले ,हमहूं तुमहूं पेंग बढाई , चुनरि
लैइकै उड़ि गै पवन ,
चलौ----
द्याखौ चाचर ,थ्वालै,टप टप बूदैं
गांवै गाना,नाचि रहीं हैं उई झमाझम,
चलौ---
चहूं दिशन मा गूजैं करतल,नदिन
अउ नालन मा भरि गा जल,डारिया
निखरि निखरि के बुलावैं,कलियां
मंद मंद मुसकावैं,नाचैं मयूरा होइके
मंलग,
चलौ----
भीगि भीगि के संखियां नाचैं ,ऐइसी
भागैं ,वइसी भागै,परि गे है अमवा मा
झूले ,हमहूं तुमहूं पेंग बढाई , चुनरि
लैइकै उड़ि गै पवन ,
चलौ----
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